‘मैं अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल की ओर, लोग आते गये और कांरवा बनता गया’। पर, मानवेन्द्र सिंह के साथ विडम्बना ये है कि मंजिल की ओर जाने का रास्ता जो उन्होने चुना वो रिंग रोड़ निकला। ब्लैक काफी और बीड़ी के धुंए के बीच मानवेन्द्र सिंह दिल्ली में कांग्रेस की अनुशासन हीनता से अंचभे मे नजर आये। या फिर ये कहे कि उन्होने एक आम राजनीतिक कार्यकर्ता के संघर्ष को जीवन में पहली बार महसूस किया।
कांग्रेस ने सुनीता भाटी को जैसलमेर से प्रत्याशी बनाने की उनकी मांग को अस्वीकार कर दिया। फिर उन्होने नागौर के खींवसर में दुर्ग सिंह की पैरवी करने को कोशिश की पर निराशा हाथ लगी। साथ ही, मानवेन्द्र सिंह को कांग्रेस वालो ने बाड़मेर तक सीमित रहने का निर्देश भी दे दिया। इसके बाद सिवाणा से मानवेन्द्र सिंह ने बाबा निर्मलदास को कांग्रेस का टिकिट दिलाने के प्रयास किये पर टिकट गिरा पंकज प्रताप सिंह की झोली में जो सचिन पायलट के करीबी बताये जाते है। हालांकि पंकज प्रताप बाड़मेर जिले में कांग्रेस के सबसे कमजोर उम्मीदवार है।
मानवेन्द्र सिंह ने उनकी स्वाभिमान रैली के दौरान पत्नी चित्रा सिंह को आगे बढ़ाने को कोशिश की पर बाद में मां शीतल कंवर के कहने पर भाई भूपेन्द्र को भी साथ रखने को मजबूर हुए। भूपेन्द्र सिंह की नजर पचपदरा पर थी वही चित्रा सिंह को पोकरण की चमचम रास आने लगी थी। हुआ ये कि राहुल गांधी के द्वारा ड़ाली गई ज्यादा मिठास ने चमचम का स्वाद कड़वा कर दिया।
मानवेन्द्र के समर्थको को उम्मीद है कि वे सांसद के प्रत्याशी होगे। पर तब तक लूणी में काफी पानी बह चुका होगा और अगर पानी नही बहा तो खारापन जरुर बढ़ जायेगा।
कांग्रेस ने बाड़मेर जैसलमेर की मजबूत किलेबंदी की है। सालेह मोहम्मद और रुपाराम के कांबिनेशन मे पोकरण और जैसलमेर सीटों पर कोई कमी नजर नही आती। एसएटी एक्ट संशोधन के बाद, दलित वोटों की एक तरफा पोलिंग कांग्रेस का पक्ष मजबूत करेगी। शिव से अमीन खान मजूबत प्रत्याशी है वही गुढा-मालानी और चौहटन की सीट पर कांग्रेस की नैया सरलता से पार हो जाएगी। बायतू में हरीश चौधरी बड़े जाट साबित हो सकते है वही पचपदरा में मुकाबला कांटे का होगा। पचपदरा में अगर मदन प्रजापत हारते है तो उसकी छाया मानवेन्द्र पर भी पडेगी क्योकि उनका पैतृक गांव जसोल इसी विधानसभा का हिस्सा है। सांसद सोनाराम शायद ही अपनी जीत का मेवा बांट पाये।
बाड़मेर-जैसलमेर में कांग्रेस मजबूत स्थिती में दिखाई देती है और इसमें मानवेन्द्र की भूमिका कही नजर नही आती। ऐसे में मानवेन्द्र को कांग्रेस में नाते की औरत कहना अतिशियोक्ति नही। स्वाभिमान की लहरे अभी दबी हुई है पर समय आने पर हिलोरे जरुर मारेगी और उनकी राजनीतिक नैया के लिए घर वापसी सिवा कोई चारा नही। या फिर जसोल परिवार की कहानी कुछ और थी, दिखाई कुछ औऱ गयी । मगर सच्चाई ये है कि मारवाड़ का राजपूत दोनो तरफ से ठगा हुआ महसूस कर रहा है और जाने को जगह, कही नही है।